December 7, 2023 3:12 am

आष्टा के युवाओं ने माना कि “हमारे पाँव का काँटा, हमीं से निकलेगा”

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।

सुदर्शन वीरेश्वर प्रसाद व्यास

मशहूर शायर राहत इंदौरी का ये शेर आष्टा युवा संगठन की गतिविधियों पर सटीक बैठ रहा है। मुख्यमंत्री के गृह जिले की सबसे बड़ी तहसील कही जाने वाली आष्टा का मुख्यालय यूँ तो व्यापार के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अब चोरियों के लिए भी अपनी पहचान बना रहा है।

आए दिन घर के सामने से दिन – दहाड़े बाईक चोरी से परेशान नागरिकों में चोरों का ऐसा खौफ शायद ही कहीं देखने को मिले। ऐसे में सीमित बल के सहारे आष्टा पुलिस अपनी क्षमतानुसार कार्रवाई तो करती है, लेकिन इस तरह की चोरी पर अंकुश लगाने में असमर्थ है। असल कारण नगर की जनसंख्या के हिसाब से दल-बल की कमी होना है। सवा लाख से अधिक के आष्टा नगर में पुलिसकर्मी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, बीते साल नगर के अलीपुर क्षेत्र में पार्वती थाना स्थापित हुआ लेकिन स्थिति लगभग जस की तस है।

नगर में बढ़ते बाईक चोरी के मामलों को देखते हुए पुलिस ने आष्टा युवा संगठन का सहयोग लिया। बड़ा बाज़ार, बजरंग कॉलोनी, सुभाष चौक, भोपाल नाका और कॉलोनी चौराहा पर प्वाइंट बनाकर नगर के युवाओं ने सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली। युवाओं की गश्ती से परिणाम संतोषप्रद है कि बीते एक पखवाड़े से जारी पुलिस और आष्टा युवा संगठन की कदमताल से चोरी के सिलसिले पर अंकुश लगा है।

कहने और सुनने में ये घटना सामान्य लगे, लेकिन जब मनन करें तो गंभीर भी है और हास्यास्पद भी! गंभीर इसलिए कि घर के भीतर रखी बाईक चोरी दिनदहाड़े हो जाती है, पीड़ित पुलिस से इसलिए फरियाद नहीं लगा पाते क्योंकि कुछ हज़ार रुपये देकर वे गाड़ी वापस मंगवा सकते हैं और यदि पुलिस से शिकायत की तो अगली बाईक जाने का भी डर रहता है। ये घटना हास्यास्पद इसलिए भी है कि क्षेत्र से चुने गये सांसद, विधायक समेत सत्ता और विपक्ष के तमाम जनप्रतिनिधि मौन हैं।

मध्यप्रदेश के गृह मंत्रालय से थानों और चौकियों के निर्धारण और पुलिसबल के मापदंड का आदेश खंगाला तो उसमें देखा कि नगर में पचास हज़ार की आबादी पर एक निरीक्षक, आठ उप-निरीक्षक समेत कुल पचहत्तर पुलिसकर्मियों का बल होना चाहिए। आष्टा में 2 थाने और 1 चौकी है, आष्टा पुलिस की रात्रि गश्त में 3 प्वाइंट भी हैं। ऐसे में धार्मिक त्यौहारों, राजनीतिक कार्यक्रमों या रैलियों समेत बड़े आयोजनों में पड़ोसी थानों से पुलिस बल बुलाया जाता है। क्या जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी नहीं है कि नगर की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पुलिसबल को बढ़ाने की मांग की जानी चाहिए? स्थानीय पुलिस जन-सहयोग से अपना काम कर रही है लेकिन नगर सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस और जनता के सामन्जस्य के साथ जनप्रतिनिधियों की भी बनती है।

खैर, आष्टा युवा संगठन इस अनुकरणीय पहल के लिए बधाई का पात्र है। जनसहयोग से ही सही लेकिन चोरियों में कमी तो आई है और नागरिकों में पनप रहे खौफ में भी। चोरियों के रूप में काँटा हमारे पैर में लगा था, वो दर्द हम ही जान सकते हैं। काश कि जिम्मेदार भी इस दर्द को समझें!

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