सादगी के साथ किया गया भगवान श्रीगणेश का विवाह आयोजन झुकता वही है जिसमें जान है, अकडऩा मुर्दे की पहचान है-भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा

सादगी के साथ किया गया भगवान श्रीगणेश का विवाह आयोजन
झुकता वही है जिसमें जान है, अकडऩा मुर्दे की पहचान है-भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा

सीहोर। झुकता वही है जिसके सीने में जान है वरना अकडऩा तो मुर्दे की पहचान है। जो जितना झुकता है वह उतना ही आगे बढ़ जाता है। माया और काया का अहंकार नहीं करना चाहिए। भगवान की भक्ति सबसे पहले हमारे अहंकार को नष्ट करती है। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी श्री कार्तिक शिव महापुराण कथा के पांचवें दिन भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे।
 शनिवार को महापुराण कथा के दौरान दक्ष प्रजापति के साथ ही भगवान श्री गणेश के विवाह आदि का वर्णन किया। इस मौके पर उन्होंने माया और भक्ति के अंतर को बताया। प्रभु की माया हमें प्रभु से दूर करने के लिए है। माया का कार्य ही है कि हमें प्रभु से दूर करना। माया जीव और शिव का मिलन नहीं होने देती। माया एक तरह से हमारी परीक्षा लेती है और इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर ही हम प्रभु तक पहुंच सकते हैं। माया के लालच में जीव नाचने लगता है और भक्ति में भगवान भक्त के हो जाते है। जन्म-जन्म के संस्कारों के कारण ही व्यक्ति की अच्छी या बुरी धारणाएं बनती है, बार-बार के जन्मों के पाप कर्मों का निर्घातन करना और फिर उसे निकालना। यदि अपने अहंकार, माया, लोभ, हिंसा और मोह को सपोर्ट न मिले तो उसे निकाला जा सकता है। कर्म चिंगारी है और इसे सपोर्ट मिलना बारूद है, इसे निष्क्रिय करने की व्यवस्था को बनाना कि वे पनप ही नहीं पाएं, इसे ही कर्मों का निर्घातक कहलाता है। परमात्मा कहते हैं कि वह पाप दृष्टि के कारण ही नकारात्मक चिंतन करता है। जिन कर्मों के कारण से नकारात्मक विचार मन में आते हैं उसके कारण को मिटाया जाए तो वह सकारात्मक बन सकता है। इसके लिए परमात्मा ने कहा है कि काया में रहते हुए भी काया पर अधिकार को छोडऩा है।
भगवान शिव और माता सती का वर्णन
भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि एक बार दक्ष प्रजापति ने महायज्ञ करवाया। यज्ञ में अनेक देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र आदि देव यज्ञ में आए परंतु दक्ष प्रजापति ने अपने दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया। इससे दक्ष की पुत्री एवं भगवान शिव की अर्द्धांगिनी देवी सती रुष्ट हो गईं। वे यज्ञस्थल पर गईं। वहां उन्होंने अपने पिता से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा। दक्ष प्रजापति ने शिव के प्रति दुर्वचनों का उपयोग किया। इससे आहत देवी सती ने यज्ञकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। शिवजी को जब इसका समाचार मिला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उन्होंने सती की देह उठाई और ब्रह्मांड में घूमने लगे। प्रलय के कोप से रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से देवी की देह को कई भागों में विक्त कर दिया। विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि महापुराण का समापन रविवार को सादगी के साथ किया जाएगा। महापुराण का प्रसारण दोपहर दो बजे से पांच बजे तक जारी रहता है। 

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