शब्दों का संतुलन इंसान के व्यक्तित्व को परिलक्षित करता है- मुनि विराट सागर
आष्टा- शब्द ब्रह्म हैं शब्दों की यात्रा लंबी होती है। शब्द पर्याय बदल देते है। शब्दों को तोल मोल कर बोलना चाहिए। शब्द मन्त्र भी हो सकते और मन्त्रणा के साधन भी शब्दों का संतुलन आपके व्यक्तित्व को परिलक्षित करता है। दया और प्रेम से भरे शब्द छोटे हो सकते है परन्तु वास्तव में उनकी गूंज अनन्त होती है। यह प्रवचन आचार्य श्री विद्या सागर जी के शिष्य पूज्य मुनि श्री 108 विराट सागरजी ने श्रेष्ठ श्रावक अजीत जैन आस्था के चौके में आहार चर्या सम्पन्न होने के पश्चात जैनेतर गुरुभक्त विप्र श्रेष्ठ शुभम शर्मा के आवास पर सनातन धर्म के ज्येष्ठ आचार्य जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद जी महाराज द्वारा स्थापित प्रभु प्रेमी संघ के संयोजक तथा पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार, भागवत कथा प्रमुख तथा गायत्री परिवार के मोहन सिंह अजनोदिया, महा सचिव प्रदीप प्रगति, दिगम्बर जैन समाज अध्यक्ष यतेंद्र श्रीमोढ सहित सदस्यगण को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। मुनि श्री ने आगे कहा कि संतत्व का अर्थ है सम्यक दर्शन, ज्ञान ओर चारित्र को धारण करना एक प्रश्न के उत्तर में मुनि श्री ने बताया कि आरती स्वमेव ही मंगलकारी होती है। आरती के दीपक की लो में सात्विक ऊर्जा प्रकट हो जाती है हमारी सस्ति में भगवान और संतो की आरती में कुशल शब्द संयोजन से भाव पुष्प अर्पित करके भक्तजन पुण्य और सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करते हैं। मुनि श्री साईं कालोनी स्थित जैनेतर गुरुभक्त शुभम शर्मा के आग्रह पर उनके निवास पर पहुंचे थे, जैन-जैनेतर भक्तों ने परिजन के साथ महाराज श्री के चरण प्रक्षालन के पश्चात मंगल आरती भी की। इस अवसर पर जैन महिला मंडल की श्रीमती रजनी जैन, श्रीमती फूल कुंवर जैन, राज परमार, अनिल धनगर, अनिल प्रगति श्रेयांश जैन, दिपेश जैन, श्रीमति पूजा शर्मा, कुमारी शिवि शर्मा श्रीमती मोना आस्था जैन, संजय जैन किला आदि उपस्थित थे।
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