सुशीला विद्या मंदिर विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाया गया।
– आष्टा ब्लाॅक के ग्राम बागेर में स्थित सुशीला विद्या मंदिर बागेर में संस्था संचालक नरेन्द्र परमार, प्रबंधन राजेश कुमार परमार, प्राचार्य पवन वर्मा की सानिध्य में संस्था के विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाया गया। संस्था के मार्गदर्शक अशोक कुमार परमार भी संस्था के शैक्षणिक भ्रमण पर मार्गदर्शक के रूप में साथ में उपस्थित रहे। सर्वप्रथम उज्जैन के महाकाल कोरिडोर का भ्रमण कराया गया तथा बच्चों को उज्जयनि के राजा महाकाल के दर्शन कराया एवं महाकाल के दर्शन के बाद शैक्षणिक भ्रमण वह से सीधे मंदसौर पशुपतिनाथ मंदिर प्रागण में ले जाया गया, वहा पर अष्टमुखि भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करया कर वहां से सीधे भगवान श्री सांवलिया सेठ मण्डप्या ले जाया गया तथा सांवरिया सेठ मण्डप्या में रात्रि आरती में शामिल होरक रात्रि विश्राम वहीं करे प्रातः काल की आरती कर। सांवरियां जी मंदरि राजस्थान के चित्तौडगढ़ जिले में स्थित है।यह सांवलिया जी नाम से भी जाना जाता है, किंवदंती यह है कि वर्ष 1840 में, भोलाराम गुर्जर नाम के एक ग्वाला ने बागुंड गाँव के छापर में तीन दिव्य मूर्तियों को भूमिगत दफनाने का सपना देखा था, साइट को खोदन पर, भगवान श्रीकृष्ण मी तीन सुन्दर मूर्तियों की खोज की गई, जैसा की सपने में देखाया गया था। मूर्तियों में से एक को मंडफिया ले जाया गया, एक भादसोड़ा और तीसरा बागंुड गाँव के छापर में उसी स्थान पर जहां यह पाया गया था। तीनों स्थान मंदिर बन गए है। ये तीनों मंदिर 5 किमी की दूरी के भीरत एक-दूसरे के करीब स्थित हैं। सांवलिया जी के तीन मंदिर प्रसिद्ध हुए और तब से बड़ी संख्या में भक्त उनके दर्शन करने आते है दन तीनों मंदिरों मे मंडफिया मंदिर को सांवलिया जी धाम (सांवलिया का निवास) के रूप में मान्यता प्राप्त है। तथा अगला पढाव चित्तौड़गढ की ओर शैक्षणिक भ्रमण बढ़ा तथा वहा पर चित्तौडगढ़ के किले का भ्रमण पर ले जाया गया तथा वहां के इतिहास के बारे में छात्र/छात्राओं को जानकारी दी गई।
चित्तोड़गढ़ दुर्ग भारत का सबसे विशाल दुर्ग है। यह राजस्थान के चित्तौडगढ़ में स्थित है जो भीलवाड़ा से कुछ किमी दक्षिण में है। यह एक विश्व विरासत स्थल है। चित्तौड मेवाड़ की राजधानी थी। यह इतिहास का गवाह है इसने तीन महान आख्यान और पराक्रम के कुछ सर्वाधिक वीरोचित कार्य देखे हैजो अभी भी स्थानीय गायकों द्वारा गाए जाते है। चित्तौड़ के दुर्ग को 21 जून, 2013 में युनेस्कों विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया। चित्तौड़ दुर्ग को राजस्थान का गौरव एवं राजस्थान के सभी दुर्गों का सिरमौर भी कहते है। चित्तौड़गढ़ में और भी स्माकर है जैसे, रावत बाघसिंह का स्मारक, भैरव पोल, जयमल व कल्ला की छतरियाँ, हनुमान पोल, नीलकंठ महादेव का मंदिर ऐसै कई और भी स्मारक थे जिन्हें छात्र/छात्राओं को दिखाया एवं उनके इतिहास के बारे बताया गया। इसे शैक्षणिक भ्रमण पर संस्था शिक्षक रानू परमार, हरिनारायण प्रजापति, अतिम विश्वकर्मा एवं समस्थ संस्था स्टाॅफ शैक्षण्कि भ्रमण में शामिल थे। विद्यार्थियों ने भी शैक्षणिक भ्रमण का काफि उत्साह दिखाया एवं इतिहास के प्रति अपनी जिज्ञासा प्रकट की एवं भ्रमण का पूर्ण रूप से आनन्द लिया।