साहित्य शिल्पी की मासिक सरस काव्य निशा सम्पन्न
आष्टा (नि.प्र.) – नगर के प्रबुद्ध कवियों एवं साहित्यकारो की संस्था साहित्य शिल्पी की मासिक सरस काव्य निशा संस्था के अध्यक्ष दिलीप संचेती के सौजन्य से उनके शांतिनगर स्थित निवास पर सम्पन्न हुई जिसमें विशिष्ट अतिथि के रूप में मालवी भाषा के प्रख्यात हास्य कवि हजारीलाल हवलदार की उपस्थिति रही और संस्था की ओर से पुष्पमाला के साथ अभिनंदन पत्र भेंट करके उनका स्वागत किया गया।
सर्वप्रथम मां शारदा के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण के साथ आयोजन का विधिवत आरंभ हुआ तत्पश्चात सस्वर सरस्वती वंदना श्रीराम श्रीवादी एवं आदित्य गुप्ता हरि द्वारा पढ़कर आयोजन का मार्ग प्रशस्त किया गया। इसके पश्चात् हजारीलाल हवलदार के साथ अतिथि एवं श्रोता के रूप में उपस्थित वार्ड क्रमांक 15 के पार्षद तेजसिंह राठौर, जैन श्वेताबर समाज के अध्यक्ष पवन सुराणा, महावीर स्थानकवासी श्रावकसंघ के अध्यक्ष लोकेन्द्र बनवट, राधाकृष्ण धारवां एडवोकेट, अनारसिंह वर्मा, विनोद धनगर, विकास धारवां एवं सौरभ धारवां का भी पुष्पमाला के साथ स्वागत आयोजक पुनीत संचेती द्वारा किया गया। कवि अतुल जैन सुराणा द्वारा प्रारंभिक संचालन के बाद संचालन के दायित्व का डॉ. प्रशांत जामलिया द्वारा निर्वहन करते हुये आयोजन को गति प्रदान की गई एवं सभी कवियों को रचना पाठ के लिये उनके सम्मान में मुक्तक पढ़ते हुये आमंत्रित किया गया और उनकी रचनाओ से पूरा वातावरण काव्य लहरियों से सरोबार हो गया एवं कवियों नें अपने गीत, ग़ज़ल एवं मुक्तको के माध्यम से सभी रस प्रस्तुत कर वाहवाही बटोरी।
रचनाकारो के रूप में क्रमानुसार युवा कवि डॉ. कैलाश शर्मा, शायर जावेद अली जावेद, कवि अतुल जैन सुराणा, प्रांजल भाषा के गीतकार आदित्य गुप्ता हरि, हास्य बम गोविन्द शर्मा, संगीतज्ञ श्रीराम श्रीवादी, विचारक जुगल किशोर पवार, हास्य कवि मूलचंद धारवां, गीतिका विशेषज्ञ श्याम शर्मा सलिल, गजलकार अजमतउल्लाह, वरिष्ठ कवि ललित बनवट, गीतकार संजय जैन किला, सबरंग कवि दिलीप संचेती, ओज कवि डॉ. प्रशांत जामलिया एवं अंत में विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित मालवी हास्य कवि हजारीलाल हवलदार द्वारा काव्य पाठ किया गया। हजारी दादा ने अपने उद्बोधन में कहा कि एक कवि को शब्दो की रचनात्मकता के रूप में जो मां सरस्वती का प्रसाद मिला है वो मां की कृपा है जो हर किसी पर नहीं होती। किसी भी कवि को अपनी रचनाधर्मिता का अहंकार नहीं होना चाहिये और कवि का चरित्र कांच की तरह पारदर्शी एवं स्वच्छ होना चाहिये। जिस भी कवि नें इन पवित्र नियमों का पालन नहीं किया वे बौद्धिक रूप से समाप्त हो चुके हैं। उनके द्वारा हास्य रचनाओ के साथ करूण रस की मार्मिक रचनाओं का भी पाठ किया गया। गौमाता की दुर्दशा पर एक रचना पढ़ते हुये उन्होनें कहा कि ‘‘सुरबंधित गौमाता का क्यों धरती पर सम्मान नहीं ।’’ आयोजन के अंत में आभार पुनीत संचेती द्वारा व्यक्त किया गया।