मानवता के कल्याण के लिए वन गए थे भगवान श्रीराम-कथा व्यास श्री हरिराम दास महाराज
सीहोर। भारतीय धर्म संस्कृति में भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है लेकिन भगवान राम की प्रासंगिकता को आज भी माना है। रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है उसे अगर सामान्यजन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए। मानवता के उद्धार के लिए भगवान श्रीराम वन गए थे। उक्त विचार शहर के कस्बा स्थित तिलक पार्क के समीप नौ दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के आठवें दिन कथा व्यास श्री हरिराम दास महाराज ने कही। इस अवसर पर भगवान श्रीराम के वनवास और केवट प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि अयोध्या के कोपभवन में कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वचन मांगा। जिस पर राजा दशरथ ने कहा कि रघुकुल रीति सदा चल आई, प्राण जाई पर वचन न जाई, यह सुनते ही कैकयी ने राजा दशरथ से दो वचनों में से, पहला वचन अपने पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी तथा दूसरा प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास । यह वचन सुनते ही महाराजा दशरथ के होश उड़ गए, जब प्रभु श्रीराम इस बात से अवगत हुए, तो वह पिता के वचन को निभाने के लिए वन जाने को सहर्ष तैयार हो गए। माता सीता व लक्ष्मण के साथ वन को चल दिए।
केवट प्रसंग सुनने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु
केवट प्रसंग सुनने के लिए श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ पड़ी थी। भगवान रामचंद्र ने अपने साथ आए मंत्री सुमंत को समझाकर रथ लेकर वापस राजा दशरथ के पास जाने के लिए रवाना किया। उसके बाद सीता, लक्ष्मण व निषादराज के साथ गंगा तट पर आए। केवट को गंगा पार जाने के लिए नाव लाने को कहा तो केवट ने लाने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि है नाथ मैं चरणकमल धोकर ही आपलोगों को नाव में चढ़ाऊंगा। फिर प्रभु की आज्ञा पाकर उसने एक लकड़ी के कठौते में पानी लाकर प्रभु के चरण कमलों को धोकर उस जल को पूरे परिवार को पी लिया। इसके बाद अपने पितरों को भवसागर से पार कराकर प्रभु को गंगा पार कराया। केवट को प्रभु राम उतराई में रत्नजड़ित अंगूठी देने लगे तो केवट ने नाव पार कराई नहीं ली। केवट ने कहा कि लौटते समय आप मुझे जो देंगे, उसे प्रसाद समझकर मैं सिर चढ़ाकर लूंगा। इसके बाद सीता ने गंगा मइया से आशीर्वाद लिया व प्रभु ने गणेश और शिव का स्मरण कर गंगा को शिश झुकाकर सखा निषादराज, लक्ष्मण व सीता के साथ वन के लिए चले। कथा व्यास श्री हरिराम दास महाराज ने रामकथा में प्रभु को केवट से गंगा पार कराने का संवाद सुंदर शब्दों में वर्णन किया, जिससे सभी श्रद्धालु आनंदित हुए।
यज्ञ देव महाराज पहुंचे राम कथा का श्रवण करने
श्रीराम कथा में दीवानगंज से पधारे यज्ञ देव महाराज, किन्नर समाज से पायल गुरु, वाल्मीकि समाज, शाक्य समाज, मालवीय समाज एवं चर्मकार समाज बंधुओं ने रामायण जी की आरती की। इसके अलावा अनेक सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी भी पहुंचे।