भागवत कथा में गोवर्धन पूजा के साथ छप्पन भोग के दर्शन
सीहोर। भगवान की भक्ति के लिए भक्तों के अंदर शरणागत का भाव होना आवश्यक है, तभी उसे प्रभु के श्री चरणों में स्थान प्राप्त हो सकता है। जीवन की सफलता का भी तो मुख्य उद्देश्य यही है। यह बात शहर के बड़ा बाजार स्थित अग्रवाल धर्मशाला में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवें दिवस आचार्य पंडित देवेन्द्र राधेश्याम व्यास ने गोवर्धन पूजा की दिव्य कथा विस्तार पूर्वक सुनाई। जिसे सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। शुक्रवार को आरती के दौरान पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष राकेश राय सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
आचार्य श्री व्यास ने बाल कृष्ण की अनेकों बाल लीलाओं का वर्णन करने के पश्चात गोवर्धन पूजा एवं इन्द्र के मान मर्दन की कथा सुनाई। इस अवसर पर भगवान गिरिराज महाराज के समक्ष सुंदर छप्पन भोग के दर्शन कराए। उन्होंने यह भी बताया कि जहां सत्य एवं भक्ति का समन्वय होता है, वहां भगवान का आगमन अवश्य होता है। गाय की सेवा एवं महत्व को समझाते हुए बताया कि प्रत्येक हिन्दु परिवार में गाय की सेवा अवश्य होनी चाहिए। गाय का दूध अमृत के समान बताया। गोवर्धन भगवान की पूजा विधि विधान से कराई।
उन्होंने कहा कि भगवान को उनकी की कृपा से ही जाना जा सकता है, मगर भगवत कृपा की एक शर्त शरणागति है। शरणागत का शाब्दिक अर्थ है शरण में आया हुआ, कितु इसका निहितार्थ आध्यात्मिक संदर्भ में ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण से है। वसुदेव जी के कहने पर ब्रज से भगवान कृष्ण और बलराम के रक्षार्थ नंद बाबा का गोकुल जाने की बजाय श्री हरि के शरण में जाना इसकी प्रामाणिकता को सिद्ध कर रहा है। कथा को आगे बढ़ाते हुए सांसारिक, सामाजिक, भौतिक और मानसिक व्याधियों से मुक्ति का सबसे सुलभ मार्ग भगवान के श्री चरणों में समर्पण का भाव होना है। चूंकि, जीव अपनी जरूरत से अधिक सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति में जुटा रहता है और अनेकानेक प्रकार के कर्म बंधनों में बंध जाता है। इन कर्म बंधनों से मुक्त होने का एक मात्र उपाय है कृष्ण भक्ति। मगर इसके लिए भक्त में श्रद्धा और विश्वास का होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा के बिना कोई भी उन्हें नहीं जान सकता। ईश्वर की सच्ची साधना समस्त प्रकार के अहंकार से मुक्त होकर निष्काम भाव से कर्म करना है। कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीकृष्ण का पूर्ण शरणागत भक्त इस अनित्य संसार में किसी भी परिस्थिति में व्याकुल नहीं होता। भगवान श्रीकृष्ण निरंतर अपने शरणागत भक्त की रक्षा करते हैं और उसका पालन करते हैं।