जब तक कार्यवाही होगी..**तब तक तो लुट चुके होंगे अभिभावक*
निजी स्कूलों द्वारा किताबों और यूनिफार्म के नाम पर जो लूट मची है उसको लेकर अभिभावकों में भारी रोष है रोज इसकी खबर अखबारों की सुर्खियां भी बन रही है लेकिन उस पर अभी तक कोई एक्शन नहीं हुआ। कहा यह जा रहा है कि बहुत जल्द इस पर कार्यवाही की जाएगी लेकिन इस मसले पर प्रशासन और शिक्षा विभाग की उदासीनता को देखते हुए यह कहना गलत ना होगा कि जब तक कार्यवाही होगी तब तक अभिभावक पूरी तरह से लुट चुके होंगे।
*किताबों से लेकर स्कूल ड्रेस तक सब कुछ सेट*
अविभावकों की माने तो स्कूल माफियाओं द्वारा नए शिक्षण सत्र से ही लूट करने की सारी योजना क्रियान्वित कर ली है। जिसमें कुछ दुकानदार बाकायदा परसेंटेज के भागीदार बने हुए है। स्कूल प्रबंधन द्वारा अपनी तय रणनीति के तहत एक विशेष दुकानदार को शिक्षण संबंधित सामग्री बेचने का ठेका दिया जाता है। जहां अविभावकों को भेजकर मनमाफिक दाम वसूले जा रहे है। इतना ही नहीं बेहद घटिया कपड़ों से निर्मित स्कूल ड्रेस को भी ये लोग बेहद ऊंचे दामो पर बेचकर मुनाफा कमाने का खेल चला रहे है।
*चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर लूट*
निजी स्कूलों द्वारा हर वर्ष यह प्रक्रिया अपनाई जाती है कि कुछ विशेष दुकानों पर ही किताबें और यूनिफार्म लेना आवश्यक होता है हर वर्ष इस बात पर हल्ला मचता है लेकिन इन दुकानों पर ना तो कभी कोई कार्यवाही होते हैं और ना ही उनकी दुकानें सील की जाती है निजी स्कूलों और इन दुकानों के बीच में जो कमीशन का खेल चलता है वह प्रशासन विभाग को पूरी तरह से मालूम है बावजूद इसके इन पर कोई कार्यवाही ना होना जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
*जब हो जाएगी खरीददारी शायद तब होगा आदेश जारी.*.
एक बात तो साफ है कि साल भर में महज एक माह के लिए यह खेल खेला जाता है। जिसमें लूट सको तो लूट लो कि तर्ज पर होड़ मचती है। सभी को पता है कि एक बार खरीदी हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कर पायेगा। रह जाएगी तो सिर्फ कागजी कार्यवाही।लिहाजा अपने तय समय के हिसाब से लूट खसौट को जारी रखा गया है। इधर कार्यवाही की बाट जोह रहा अविभावक मजबूरी वश किताबें और ड्रेस खरीद तो रहा है लेकिन उसे इतना तो समझ आ ही गया है कि कार्यवाही होगी तो जरूर लेकिन सारी खरीदी हो जाने के बाद।
*शिक्षा माफिया के माया जाल से प्रताड़ित अभिभावक*
शिक्षा माफिया के इस मायाजाल से अधिकांश अभिभावक अपने आप को प्रताड़ित मान रहे है क्योकि माध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चो को अच्छे स्कूलों में पढ़ने की चाह में प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते है लेकिन प्राइवेट स्कूल मध्यमवर्गीय परिवारों की जेब पर डाका डाल रहे है ।
नइ शिक्षा नीति का लागू नही होना बना कारण,
अगर समय से नाइ शिक्षा नीति लागू हो जाती तो यह मुसीबत माध्यम वर्गीय परिवारों को नही झेलनी पड़ती ,किंतु शिक्षा विभाग के लचर व्यवस्था के चलते नई शिक्षा नीति लागू नही हो पाई है और शिक्षा नीति पर अदिहिकारी वर्ग कुछ भी कहने से बचते नज़र आ रहे है।
अब देखना यह है कि शिक्षा अधिकारी समय से जागते है या माध्यम वर्गीय और गरीब परिवारों की जेब पर डाका डालने के बाद जागते है।
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