दिल्ली की हवा को प्रदूषित होने से बचाएंगे ये ‘खास कीड़े’, 15 दिनों में करेंगे पराली का काम तमाम!

- दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक अनेक जगहों पर 500 के पार पहुंचा
- स्पीड कंपोस्ट से पराली को जैविक खाद में तब्दील करना हुआ आसान
- सिर्फ 15 दिनों में खेत होगा बुवाई के लिए तैयार
- पारंपरिक तरीके से बहुत जल्दी तैयार होगा कंपोस्ट
कुछ दिनों की राहत के बाद दिल्ली में प्रदूषण की समस्या फिर से बढ़नी शुरू हो गई है। मंगलवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता एक बार फिर ‘बेहद गंभीर’ की श्रेणी में पहुंच गया है। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम में PM2.5 का स्तर 474, आनंद विहार में 600, मदर डेयरी में 541 और अमेरिकी दूतावास क्षेत्र में 562 तक पहुंच चुका है, जो बेहद गंभीर स्तर का प्रदूषण माना जाता है। इसके पीछे भी पंजाब-हरियाणा में पराली जलाए जाने को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसी बीच एक कंपनी ने पराली प्रबंधन के लिए माइक्रोब्स पर आधारित ‘स्पीड कंपोस्ट’ तैयार किया है। दावा है कि इस स्पीड कंपोस्ट से 15 दिनों के अंदर पराली खेतों में ही मिट्टी में मिल जाएगी। इस विधि में खेतों की मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ेगी, जिससे अगली बोई जाने वाली फसल में खाद के उपयोग की मात्रा में भी कमी आएगी।
कीमत 2,000 रुपये प्रति एकड़
कैन बायोसिस की शीर्ष अधिकारी संदीपा कानितकर ने बताया कि एक एकड़ की पराली खत्म करने के लिए खेत में पानी भरकर स्पीड कंपोस्ट का छिड़काव कर देना है। कंपोस्ट में मिश्रित माइक्रोब्स पराली को 15 दिनों के अंदर ही खत्म कर देते हैं। एक एकड़ में स्पीड कंपोस्ट डालने के लिए स्पीड कंपोस्ट की कीमत 600 रुपये, यूरिया, पानी और मजदूरी को मिलाकर लगभग दो हजार रुपये की लागत आती है। साथ ही, यह अगली फसल के लिए खाद का काम भी करती है जिससे किसान को अंततः फायदा होता है।
सरकार से मदद की दरकार
दावा है कि इस विधि से अभी तक 20 हजार एकड़ खेत की पराली को सफलतापूर्वक खत्म किया जा चुका है। इन खेतों में बाद में पैदा की गईं फसलों में भी बेहतर परिणाम सामने आए हैं। जमीन में कार्बन की मात्रा एक फीसदी तक होनी चाहिए, लेकिन पराली के जलाने और अन्य कारणों से जमीन में कार्बन की मात्रा लगातार घट रही है। इसके कारण उत्पादन गिर रहा है। किसान उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं, जो भूमि की उत्पादकता को कमजोर कर रहा है। लेकिन जैविक कंपोस्ट विधि से भूमि में कार्बन की मात्रा बढ़ती है जो लगातार किसानों को लाभ पहुंचाता है।
सामान्य कंपोस्ट बनाने से किस तरह अलग
किसान पारंपरिक तरीके से भी कंपोस्ट बनाते रहे हैं। इसके लिए जैविक कूड़ा-कचरा, गोबर या अनुपयोगी हरी शेष फसल जैसे सभी जैविक पदार्थों को एक गड्ढे में डालकर सड़ने दिया जाता है। सड़ने के बाद इसे गड्ढे से निकालकर खेतों में डाल दिया जाता है। लेकिन इस विधि में किसान को बहुत श्रम करना पड़ता है। एक बार पूरे खेत से पराली जैसी चीजों को इकट्ठा कर गड्ढे में डालना और दूसरी बार तैयार खाद को खेतों में डालना पड़ता है। लेकिन स्पीड कंपोस्ट में पराली को इकट्ठा करने या सड़ी खाद को दुबारा खतों में डालने का झंझट नहीं होगा। पराली अपनी जगह पर ही कंपोस्ट में तब्दील हो जाएगी।
पराली जलाने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
पराली जलाने से पैदा हो रहे प्रदूषण पर
सुप्रीम कोर्ट सख्त है। उसने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए प्रति
क्विंटल 100 रुपये की सब्सिडी देने से लेकर उनके प्रति कठोर रवैया अपनाने
तक के सुझाव दिए हैं। लेकिन जैसे ही पंजाब प्रशासन ने किसानों को पराली
जलाने से रोकने की कोशिश की, दोनों के बीच टकराव शुरु हो गए हैं। स्थानीय
लोगों का दावा है कि कई जगहों पर किसान और प्रशासन के बीच स्थिति हिंसक
होने की आशंका उत्पन्न हो गई है।
ताजा जानकारी के मुताबिक कई जगहों पर किसान सड़क जाम करके बैठ गए हैं और
हटने से इनकार कर रहे हैं। किसानों की मांग है कि पराली जलाने के आरोप में
जब्त किए गए उनके ट्रैक्टर तत्काल उन्हें वापस किए जाएं। यह बुवाई का समय
है और इस समय में ट्रैक्टर जब्त करना किसानों के साथ अन्याय है। सुप्रीम
कोर्ट के आदेश और किसानों के बीच फंसा प्रशासन इस स्थिति से निबटने में खुद
को असहाय महसूस कर रहा है।