December 8, 2023 7:32 pm

उज्जैन – अद्भुत ज्योतिर्लिंग और पौराणिक देवी देवताओं के मंदिरो की नगरी, एक आध्यात्मिक हब

उज्जैन एक एतिहासिक शहर है जो मध्य प्रदेश के उज्जैन जि़ले में स्थित है। इसे उज्जयिनी के रूप में भी जाना जाता है जिसका मतलब है गौरवशाली विजेता। उज्जैन धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है और उज्जैन पर्यटन मुख्य रूप से अपने प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों के लिए देशभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। यह शहर शिप्रा नदी के किनारे स्थित है और शिवरात्रि, कुंभ और अर्ध कुंभ मेलों के लिए प्रसिद्ध है।

इसके इतिहास की एक झलक

इस शहर से अनेक पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं। एक समय उज्जैन में अशोका और विक्रमादित्य जैसे शासकों का शासन था। प्रसिद्ध कवि कालिदास ने भी इस जगह पर अपनी कविताएँ लिखी थी। वेदों में भी उज्जैन का उल्लेख किया गया है और ऐसा माना जाता है कि स्कंद पुराण के दो भाग इसी जगह पर लिखे गए थे। महाभारत में उज्जैन का उल्लेख अवंती राज्य की राजधानी के रूप में किया गया है। इस शहर को शिव की भूमि तथा हिंदुओं के सात पवित्र शहरों में से एक माना जाता है। यह शहर अशोक, वराहमिहिर और ब्रह्मगुप्त जैसी प्रसिद्ध हस्तियों से जुड़ा है।

स्ट्रीट फूड प्रेमियों के लिए एक जगह

उज्जैन में स्ट्रीट फूड बहुत प्रसिद्ध है और टावर चैक नामक जगह पर पर्यटक इसका मज़ा ले सकते हैं। यहाँ पर्यटक स्थानीय स्ट्रीट फूड का मज़ा ले सकते हैं जिसमें मुँह में पानी लाने वाले स्नैक्स जैसे चाट, पानी पुरी, घीयुक्त मकई के स्नैक्स तथा भेलपुरी शामिल हैं। उज्जैन जातीय आदिवासी गहनों, कपड़ों और बांस के उत्पादों के लिए भी प्रसिद्ध है तथा यात्री अन्य स्मृति चिन्हों के साथ इन सब वस्तुओं को स्थानीय बाज़ार से खरीद सकते हैं।

उज्जैन में और इसके आसपास के पर्यटन स्थल

उज्जैन पर्यटन अपने यात्रियों के लिए कुछ प्रसिद्ध आकर्षण प्रदान करता है। चिंतामणि गणेश मंदिर, बड़े गणेश जी का मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, विक्रम कीर्ति मंदिर, गोपाल मंदिर तथा नवग्रह मंदिर कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं। महाकालेश्वर मंदिर शहर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। भगवान शिव का यह मंदिर भी भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पाँच स्तरों में विभाजित है जिनमें गणेश, ओंकारेश्वर शिव, पार्वती, कार्तिकेय और नंदी तथा शिव के बैल की मूर्तियों को शामिल किया है। उज्जैन के अन्य पर्यटन स्थल हैं- सिद्धावत, भृतृहरि गुफाएँ, संदीपनी आश्रम, काल भैरव, दुर्गादास की छतरी, गढ़कालिका, मंगलनाथ तथा पीर मत्स्येन्द्रनाथ हैं। यहाँ आने पर यात्री कालिदास अकादमी और संदलवाला भवन के साथ कालियादेह महल भी देखने आते हैं जो अपनी शानदार वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। अपने समय के प्रख्यात विद्वान राजा जयसिंह ने वेधशाला का निर्माण करवाया था। उन्होंने सारे भारत में कई अन्य वेधशालाओं का भी निर्माण किया था। उज्जैन शहर ज्योतिष विद्या के लिए जाना जाता है। विक्रम विश्वविद्यालय अपनी सांस्कृतिक और विद्वतापूर्ण गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध है। कालिदास अकादमी भारतीय शास्त्रीय भाशा, संस्कृत का अध्ययन केंद्र है। शहर के भीतर आटो रिक्षा, बसों और ताँगों की आसान उपलब्धता से उज्जैन पर्यटन यात्रा को सुखद बना देता है। साझा आटो रिक्षा उज्जैन शहर के भीतर उपलब्ध परिवहन का सबसे सस्ता तरीका है। अधिकतर पर्यटक भी शहर के भीतर साझा आटो रिक्शा में यात्रा करना पसंद करते हैं।

महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन

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महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के पवित्र शहर में हिंदुओं के सबसे शुभ मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर एक झील के पास स्थित है। इस मंदिर में विशाल दीवारों से घिरा हुआ एक बड़ा आंगन है। इस मंदिर के अंदर पाँच स्तर हैं और इनमें से एक स्तर भूमिगत है। दक्षिणमूर्ति महाकालेश्वर की मूर्ति को दिया गया नाम है तथा इसमें देवता का मुख दक्षिण की ओर है। यह मंदिर भारत के बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक माना जाता है। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान को एकबार चढ़ाया हुआ प्रसाद फिर से चढ़ाया जा सकता है तथा यह विशेषता केवल इसी मंदिर में देखी जा सकती है। इस मंदिर में स्थित मूर्ति ओंकारेश्वर शिव की है और देवता महाकाल तीर्थ के ऊपर गर्भगृह को समर्पित है। महाशिवरात्रि के शुभ दिन पर मंदिर के परिसर में एक विशाल मेला लगता है।

दुर्गादास की छतरी, उज्जैन

दुर्गादास की छतरी उज्जैन के मंदिरों के शहर में स्थित एक विशिष्ट स्मारक है। यह स्मारक छतरी के रूप में वीर दुर्गादास की याद में बनवाया गया था जो कि राजपूताना इतिहास में एक महान शख्सियत है। वीर दुर्गादास ने महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद मुग़लों से लड़ाई की और औरंगज़ेब की इच्छा के विरुद्ध जोधपुर पर चढ़ाई करने में अजीत सिंह की सहायता की। इस बहादुर आदमी की 1718 में मृत्यु हो गई और इसकी इच्छा थी कि इसका दाह संस्कार शिप्रा नदी के किनारे किया जाए। इस स्मारक की वास्तुकला राजपूत शैली में है तथा एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह छतरी वीर दुर्गादास की मृत्यु के बाद जोधपुर के शासकों द्वारा उसकी याद में बनवायी गई थी। बहुत से लोगों का यह मानना है कि यह स्मारक छोटे से रत्न की तरह चमकता है चूंकि आसपास का परिदृश्य प्रकृति से भरपूर है।

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सिद्धवट, उज्जैन

सिद्धवट उज्जैन के पवित्र शहर में स्थित है। इस जगह के पास ही शिप्रा नदी बहती है। इस जगह को इसकी पवित्रता के कारण प्रयाग का अक्षयवट कहा जाता है। यहाँ आने पर आप शिप्रा नदी में प्रचुर मात्रा में कछुए देख सकते हैं। सिद्धवट घाट अंतिम संस्कार के बाद की प्रक्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है। मध्य प्रदेश राज्य से सैकड़ों लोग संस्कार कर्म करने के लिए सालभर यहाँ आते रहते हैं। पुराणों में भी इस जगह को प्रेत-शिला-तीर्थ कहा गया है। स्थानीय लोगों का मानना है कि देवी पार्वती ने इस जगह पर तपस्या की थी। एक किंवदंती के अनुसार एक बड़ा बरगद का पेड़ काट दिया गया तथा पूरा इलाका लोहे की चादरों से ढक दिया गया था। लेकिन हैरत की बात यह है कि बरगद की शाखाएँ लोहे की चादर में छेद करके बाहर निकल आई थी। उस दिन से, स्थानीय लोग इस जगह को पवित्र मानते है। नाथ संप्रदाय के लोग इस जगह पर पूजा भी करते हैं। 

काल भैरव, उज्जैन

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उज्जैन के मंदिरों के शहर में स्थित काल भैरव मंदिर प्राचीन हिंदू संस्कृति का बेहतरीन उदाहरण है। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर तंत्र के पंथ से जुड़ा है। काल भैरव भगवान शिव की भयंकर अभिव्यक्तियों में से एक माना जाता है। सैकड़ों भक्त इस मंदिर में हररोज़ आते हैं और आसानी से मंदिर परिसर के चारों ओर राख लिप्त शरीर वाले साधु देखें जा सकते हैं। इस मंदिर में सुंदर लैंप स्टैंड हैं। मंदिर परिसर में एक बरगद का पेड़ है और इस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग है। यह शिवलिंग नंदी बैल की मूर्ति के एकदम सामने स्थित है। इस मंदिर के साथ अनेक मिथक जुड़े हैं। भक्तों का ऐसा विश्वास हैं कि दिल से कुछ भी इच्छा करने पर हमेशा पूरी होती है। महाशिवरात्रि के शुभ दिन पर इस मंदिर में एक विशाल मेला लगता है। 

हरसिद्धि मंदिर, उज्जैन

हरसिद्धि मंदिर उज्जैन के मंदिरों के शहर में एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है जो गहरे सिंदूरी रंग में रंगी है। देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति देवी महालक्ष्मी और देवी सरस्वती की मूर्तियों के बीच विराजमान है। श्रीयंत्र शक्ति की शक्ति का प्रतीक है और श्रीयंत्र भी इस मंदिर में प्रतिष्ठित है। इस जगह का पुराणों में बहुत महत्व है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर को ले जा रहे थे, तब उसकी कोहनी इस जगह पर गिरी थी। इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठों के शासनकाल में किया गया था, अतः मराठी कला की विशेषता दीपकों से सजे हुए दो खंभों पर दिखाई देती है। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुँआ है तथा मंदिर के शीर्ष पर एक सुंदर कलात्मक स्तंभ है। इस देवी को स्थानीय लोगों द्वारा बहुत शक्तिशाली माना जाता है।

नवग्रह मंदिर

नवग्रह मंदिर शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। हमारे सौरमंडल के ग्रहों को समर्पित पूरे उज्जैन में यह एक अनूठा मंदिर है। ज्योतिष विद्या ने उज्जैन के आम लोगों के जीवन में हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा त्रिवेणी घाट पूरे शहर में सबसे अधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। विशेषकर पूर्णिमा और शनिवार के दिन मंदिर में भारी भीड़ जमा होती है। इस जगह को स्थानीय लोगों द्वारा त्रिवेणी तीर्थम भी कहा जाता है। यह मंदिर मुख्य शहर से केवल 6कि.मी. दूर स्थित है और आम जनता के लिए इस पवित्र स्थान तक आने के लिए यातायात के अनेक साधन उपलब्ध हैं। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि इस शहर में प्राचीन खगोलीय अध्ययन हुए थे। भक्तों द्वारा नारियल, फूल और सिंदूर अर्पित किया जाता है। 

गढ़कालिका, उज्जैन

गढ़कालिका, उज्जैन के मंदिरों के शहर के उपनगरीय भागों पर स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है और मध्य प्रदेश के पर्यटन मंत्रालय द्वारा अनुशसित देखने योग्य पर्यटन स्थलों में से है। यह मंदिर कालिका देवी को समर्पित है जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत शक्तिशाली देवी है। इस मंदिर से जुड़ा हुआ एक मिथक है जो यह बताता है कि इस देवी को मानने वाले महान कवि कालिदास को उनका साहित्यिक कौशल देवी के आशीर्वाद से ही प्राप्त हुआ था। सातवीं शताब्दी के दौरान हर्षवर्धन द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। मंदिर के पास शिप्रा नदी बहती है और यह मंदिर प्राचीन पारंपरिक हिंदू संस्कृति को दर्शता है। इस शक्तिशाली देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए अनेक भक्त यहाँ आते हैं। इसकी भव्यता को देखते हुए ग्वालियर के शासकों द्वारा इस पवित्र तीर्थ का पुनर्निर्माण किया गया था। 

भृतृहरि गुफाएँ

भृतृहरि गुफाएँ, मध्य प्रदेश में शिप्रा नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। ये गुफाएँ उज्जैन के प्राचीन शहर के पास है। यह जगह मध्य प्रदेश पर्यटन मंत्रालय के द्वारा एक सुंदर स्थल माना जाता है। इन गुफाओं के अंदर जाने पर एक अद्भुत अनुभव का अहसास होता है। इन गुफाओं के अंदर स्थित मूर्तिकला वर्तमान समय में अधिक देखने को नहीं मिलती है, लेकिन एक अद्भुत अनुभव उन लोगों का इंतज़ार कर रहा है जो आज तक इस जगह पर नहीं गए हैं। इस जगह जाने के लिए आपको ज़मीन के काफी नीचे तक जाना होगा और वहाँ पर साँस लेना भी बहुत मुश्किल होता है। इस गुफा का नाम महान राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई भृतृहरि के नाम पर रखा गया है। यह जगह भृतृहरि की योग पद्धतियों के कारण प्रसिद्ध हुई जो नाथा संप्रदाय में पूजनीय बन गया था। यदि आप इन गुफाओं के संरचनात्मक डिज़ाइन को देखें तो आपको 10वीं सदी के परमार काल के दो मंजि़ला मठ की अनुभूति होगी।

चिंतामण गणेश मंदिर, उज्जैन

चिंतामण गणेश मंदिर, उज्जैन के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। भगवान गणेश का आशीर्वाद पाने के लिए अनेक भक्त प्रतिदिन इस मंदिर में आते हैं। चिंतामण एक प्राचीन हिंदु शब्द है जिसका अर्थ है ’चिंता से राहत’। भक्तों की ऐसी मान्यता है कि गणेश भगवान दुख के समय उनके पास आने वाले प्रत्येक भक्त को राहत प्रदान करते हैं। मंदिर परिसर के साथ फतेहपुर रेलवे लाइन के बिल्कुल पास शिप्रा नदी बहती है। भक्तों के लिए मंदिर परिसर तक पहुँचने के लिए अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। आप मंदिर तक निजी कार, बस, आटो रिक्शा तथा रेलगाड़ी से भी पहुँच सकते हैं। यह मंदिर उज्जैन रेलवे स्टेशन से केवल 5 कि.मी. दूर है। स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि इस मंदिर में स्थित भगवान गणेश की मूर्ति स्वयंभू है। उनके दोनों ओर रिद्धि और सिद्धि विराजमान है जैसे कि वे उनकी पत्नियाँ हैं।

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कैसे पहुँचे उज्जैन

शहर के सबसे पास इंदौर हवाईअड्डा है। यह उज्जैन से केवल 55कि.मी. दूर है। उज्जैन का रेलवे स्टेशन भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा है। मुंबई, भोपाल, दिल्ली, इंदौर, अहमदाबाद और खजुराहो से यात्री सड़कमार्ग से भी उज्जैन तक पहुँच सकते हैं। इंदौर, भोपाल, कोटा और ग्वालियर से उज्जैन तक नियमित बस सेवा उपलब्ध है। उज्जैन रेलवे स्टेशन के पास यात्रियों को अनेक किफायती होटल मिल सकते हैं। अत्यधिक गर्म गर्मियों और बर्फीली सर्दियों के साथ उज्जैन का मौसम चरम पर होता है। उज्जैन आने का सबसे अच्छा समय उज्जैन आने का सबसे अच्छा समय अक्तूबर और मार्च के बीच का होता है।

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