आष्टा: संघर्षों में खिली हिन्दी – डाॅ.एम.के. तेजराज

आष्टा: संघर्षों में खिली हिन्दी – डाॅ.एम.के. तेजराज
किसी भी देश का भूत, भविष्य एवं वर्तमान भाषा का साक्षी रहा है। हरदेश की प्रगति, उन्नति व स्थिरता में भाषा मुख्य रही हैै। भारतीय जीवन भी इससे अछूता नही रहा है। भारतीय समाज पर जहा तक दृष्टि जाती है। वहां तक हिन्दी भाषा ने अपनी महत्वता सिद्ध की है। हिन्दी भाषा मुगल, अंग्रेजी आदि सभी कालों के संघर्ष की भाषा है। इन संघर्षों में भी हिन्दी भाषा खिलती गई है। उपरोक्त बातें महाविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर महाविद्यालय प्राचार्य डाॅ.एम. के तेजराज ने व्यक्त की। कार्यक्रम का प्रारंभ माँ सरस्वती के स्मरण के साथ किया गया। कार्यक्रम में डाॅ.दीपेश पाठक ने अपने विचार व्यक्त रखते हुए कहा कि भाषा किसी भी देश की संस्कृति, सभ्यता और सामाजिक चेतना को जन-जन तक पहुचानें का माध्यम है। हमारी मातृभाषा हिन्दी जो अन्य विदेशी भाषाओं से भिन्न है। डाॅ.निशि भण्डारी ने हिन्दी को सामंजस्यता का नाम दिया और कहा कि यह अपनों को अपनों से जोड़ने का कार्य करती है। जबकि अंग्रेजी अहंकार को उत्पन्न करती है। हिन्दी विभाग प्रमुख डाॅ.सबीहा ताबीर व श्री जगदीश नागले ने हिन्दी के इतिहास को कविता आदि माध्यमों से लोगो के सामने रखा। अंत में वरिष्ठ साहित्यकार आलोचक डाॅ. नामवर सिंह के दुःखद निधन पर उनको श्रृद्धांजली अर्पित की गई।
संचालन श्री धर्मेन्द्र सूर्यवंशी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का अंत में आभार हिन्दी विभाग द्वारा व्यक्त किया गया।