आष्टा: शासकीय महाविद्यालय में ’’आदि शंकराचार्य और अद्वैत सिद्धांत’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन हुआ ।

आष्टा: शासकीय महाविद्यालय में ’’आदि शंकराचार्य और अद्वैत सिद्धांत’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन हुआ ।
नगर के शासकीय महाविद्यालय में महाविद्यालय की स्वामी विवेकानंद कॅरियर मार्गदर्शन इकाई के अंतर्गत व्यक्तित्व विकास प्रकोष्ठ द्वारा ’’आदि शंकराचार्य और अद्वैत सिद्धांत’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान महाविद्यालय की डाॅ. सीमा त्रिवेदी द्वारा दिया गया।
डाॅ. त्रिवेदी द्वारा आदि शंकराचार्यजी के सम्पूर्ण जीवन व विभिन्न महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि आदि गुरू शंकराचार्य जी बचपन से ही बहुत मेधावी और प्रतिभाशाली थे। 06 वर्ष की आयु में ही वे प्रकांड पंडित हो गए थे तथा 08 वर्ष की आयु में सन्यासी बन गये थे। ये भारत के एक महान दार्शनिक एवं धर्मप्रवर्तक थे। इन्होंने ही अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया तथा सनातन धर्म की विभिन्न विचारधाराओं का एकीकरण किया एवं उपनिषदों और वेदांत सूत्रों पर प्रसिद्ध टीकाएं भी रची व इन्होंने भारत वर्ष में चार मठों की स्थापना की।
डाॅ. त्रिवेदी ने बताया कि आदि गुरू शंकराचार्य अद्वैत सिद्धांत के प्रेणता थे इसी कारण इसे शांकराद्वैत या केवलाद्वैत कहा जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार संसार में ब्रह्म ही सत्य है बाकि सब मिथ्या है। ब्रह्म सत्य और जगत मिथ्या है। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है। इन्होंने अपने ब्रह्मसूत्र में ’’अहं ब्रह्मास्मि’’ ऐसा कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया हैं। अद्वैत का यह सिद्धांत चराचर सृष्टि में भी व्याप्त हैं। जब पैर में कांटा चुभता है तब आंखों से पानी आता है और हांथ कांटा निकालने के लिए जाता है। यह अद्वैत का एक उत्तंम उदाहरण है।