सीहोर : शुक्रिया ! महबूब शहर – अहसास, याद, टीस, मौज, नफ़रत, मुस्कुराहट, हिम्मत, ज़िन्दगी और इश्क़ असल में ये सब होता क्या है ये सीखा है इस शहर से।
अमित मंकोडी
शुक्रिया ! महबूब शहर
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अहसास, याद, टीस, मौज, नफ़रत, मुस्कुराहट, हिम्मत, ज़िन्दगी और इश्क़ असल में ये सब होता क्या है ये सीखा है इस शहर से। मोहब्बत में रहना या मोहब्बत करना यूं तो अलग बात है लेकिन मोहब्बत जीना मुझे इस शहर ने सिखाया है। इस शहर ने सिखाई है ज़िंदादिली। खुलकर जीना और अपनी मौज में रहना भी!
सच कहूं तो इसकी फिज़ाओं में अजीब – सा अपनापन है जो चाहकर भी दूर होने नहीं देता। कल शाम दफ़्तर से घर की तरफ़ बढ़ रहा था तो वो पहला दिन याद आया जब सिर्फ एक छोटे से बैग में चार जोड़ी कपड़े लेकर आया था। डरा – सहमा सा था। उस वक्त ख्याल ज़हन में ये थे कि कैसे बसर होगा ? कोई नहीं जानता यहां मुझे। शहर बड़ा है कहीं कोई अनहोनी का शिकार न बन जाऊं। मन में दौड़ रहे वो ख्याल सात बरस पुराने थे। आज जब दो दिन के लिए भी भोपाल से बाहर जाता हूं तो ख्याल ये होते हैं कि मैं क्यों जा रहा हूं ? आख़िर इस शहर ने मुझे क्या नहीं दिया इन चौरासी महीनों में! इसीलिए तो भोपाल लौटने की खुशी हर बार से दोगुनी होती है।
यकीनन, इस शहर ने ज़िन्दगी की अहमियत भी बताई तो ज़िम्मेदारी भी सिखाई। इस शहर ने मुझे बेहतर इंसान बनाया है और सम्मान भी भरपूर दिया। जब जो चाहा लगा कि मुकम्मल हुआ। यहां तक कि अपना बाशिंदा तक बना लिया।
पिछले बरस इंदौर रहा और उससे पहले कुछ माह दिल्ली में बिताए। अपने घर की याद नहीं आई लेकिन भोपाल हर पल मुझे रुलाता रहा। जब घड़ी की सुइयों पर नज़र पड़ती तो भोपाल याद आता था। हर वक़्त की अपनी वो सब आदतें याद आती थी जो वक्त दर वक्त भोपाल में मेरी ज़िन्दगी बन गई थी। शायद यही कारण भी था कि दिल्ली से जब लौटा तो भोपाल आते ही आंखें भर आई थीं। मैंने महसूस किया कि अरसे बाद अपने शहर लौटा हूं। वो ख़ुशी मैंने महसूस की, जो बरसों से बिछड़े अपने महबूब से मिलने पर होती है।
जाने क्यों इस शहर से मोहब्बत है। जाने क्यों लगता है कि इससे दूर होना यानि ज़िन्दगी में रूखापन लाने जैसा है। जाने क्यों भोपाल ज़हन से भी दूर नहीं होता। जैसे गालिब को बल्लीमारान से मोहब्बत है, जैसे जॉन को अमरोहा से, जैसे राहत को इंदौर से या मंज़र को भोपाल से। जैसे मोहब्बत है तुलसी को चित्रकूट के घाट से, जैसे मीरा को वृंदावन से। यक़ीनन, मुझे ऐसी ही बेइंतहा मोहब्बत है अपने भोपाल से।
आंखों में तैर रहे सुनहरे सपनों को सच करने की हिम्मत देते इस शहर से बार – बार मोहब्बत होती है।
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