4 दशक से “साइकल के पार्ट्स से अंग्रेजी बोलने की कला” सिखाता रहा एक अस्पताल !
लेखक : सुदर्शन व्यास
हमारे बड़े बुज़ुर्ग एक कहानी सुनाते थे कि एक गांव से लड़का पढ़ने के लिए शहर गया। उसे पढ़ाई तो रास नहीं आई लेकिन एक साइकल कंपनी में काम करने लगा। जब भी गांव आता तो साइकल के पार्टस् के नाम रीपीट करके आपना रुआब झाड़ता। गांव वाले समझते कि लड़का अंग्रेज़ी में पटर –पटर बोलता है। संयोगवश उस गांव से कुछ विदेशी पर्यटक गुज़र रहे थे, तभी किसी पर्यटक ने गांव वालों से कुछ जानकारी चाही, तो गांव वालों ने उसी लड़के को बुलाकर उनके आगे कर दिया। साथ में लड़के से कहा कि भाई तुम ही इन अंग्रेजों से बात करो। अब लड़का साइकल के पार्ट्स के नाम के अलावा उन अंग्रेजी में एक नया शब्द नहीं जानता था, सो गांव वालों के सामने वही बुदबुदाने लगा। कहने का मतलब है कि आप कितना ही ख़ुदको दूसरों से विशिष्ट होने का ढोंग करलो लेकिन एक न एक दिन कलई खुलना तय है।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के गृहजिले में भी एक प्राइवेट अस्पताल के साथ यही वाकया हुआ है। ये अस्पताल 4 दशक से स्थानीय लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़ करता रहा, लेकिन जिम्मेदार धृतराष्ट्र की तरह सबकुछ जान और समझते हुए इसलिए चुप रहे क्योंकि हो सकता है कि उन्हें अपना हिस्सा समय पर मिलता रहा होगा! इस अस्पताल की कलई तो तब खुली जब शहर की एक बेटी प्रतीक्षा शर्मा की इसी अस्पताल में प्रसव के दौरान असामयिकक मौत हुई। सोचिये, 40 साल से एक अस्पताल बगैर प्रशिक्षित डॉक्टर्स और विशेषज्ञों के लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है और जिम्मेदार नौकरशाह, जनप्रतिनिधि और समाज के ठेकेदार जैसे आंखें मूंदकर बैठे रहे।
इस अस्पताल की एक विशेषता और रही कि यहां सांप, बिच्छू के काटने का इलाज भी होता था। सूत्रों के मुताबिक ये इलाज भी बगैर किसी प्रशिक्षित विशेषज्ञ के बैखोफ़ किया जाता रहा। असल में सांप के काटने पर लगाई जाने वाली दवाई “एंटी स्नेक वेनम” कभी उपयोग थी ही नहीं। ये दवाई केवल शासकीय मेडिकल कॉलेज और रिसर्च सेंटर पर ही उपलब्ध होती है। सीहोर न्यूज़ दर्पण की पड़ताल के मुताबिक अस्पताल में न तो एमडी डॉक्टर थे और न ही कोई विशेष प्रशिक्षित डॉक्टर. न ही शासकीय नियमों के मुताबिक आईसीयू और ही निशचेतना विशेषज्ञ, इसके बाद भी इसे शासकीय मान्यता किन मानकों पर मिली, जो यहां प्रसव और सर्प और बिच्छूदंश के मरीजों का इलाज किया जाता रहा!
अब जब प्रतीक्षा शर्मा की मौत के बाद असलीयत सामने आई तो कलेक्टर के आदेश पर जिले के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम ने अस्पताल में आवश्यक मापदण्डों का अभाव पाया गया। परिणामस्वरूप अस्पताल सील कर दिया, आगे की कहानी यह है कि अस्पताल बंद होने पर अब सोशल मीडिया पर मातम मनाने के सिलसिले शुरु होने की खबर आ रही है। वे इसबात का जवाब दें कि अस्पताल बंद होने पर मरीजों की गिनती कर रहे हैं, वे उनकी भी गिनती करें जिन्होंने असमय अपनी जिन्दगियां खो दी ? इन मौतों का जिम्मेदार अस्पताल प्रबंधन है, उसके ख़िलाफ एक्शन नहीं लिया जाना भी सवाल तो खड़े करता है ?
यदि आप सजग नहीं होंगे तो आपकी हालात भी उन्हीं गांव वालों की तरह होगी जिसे एक लड़का सालों तक बेवकूफ बनाता रहा, यदि यहां सुविधाएं नहीं है तो शासकीय अस्पतालों में इसकी मांग की जाए ? जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान दें!
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में 98% सांप जहरीले नहीं होते हैं इसी प्रकार बिच्छू में भी सभी बिच्छू जहरीले नहीं होते अगर हमने सांपों को पहचानने में महारत हासिल कर ली तो हमें किसी अस्पताल की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। ऐसा ही कुछ इस अस्पताल कि नर्सों ने सीख लिया था।