आष्टा। इस पावन नगरी में धर्म के प्रति अधिक आस्था है ,ऐसा समाज निश्चित नरक -निगोद में नहीं जाता है ,जहां पर भगवान की भक्ति में सदैव लोग लीन रहते हैं। प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने छ आवश्यक कार्य बताएं अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए। वही धर्म हमेशा अनंत सुख ही देगा ।धर्म का पालन करने के साथ मुनि व्रत से चलने वाला व्यक्ति सच्चा श्रावक की श्रेणी में आता है। सिद्ध भगवान की पूजा-अर्चना आगम में भी अंकित है । गृहस्थ जीवन प्रारंभ करने के पूर्व सिद्धों की आराधना अवश्य करना चाहिए।
श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर में श्री पंच परमेष्ठी विधान के पावन अवसर पर आर्यिका रत्न अपूर्वमति माताजी ने कही। आपने कहा कि मैं जहां भी जाती हूं ,वहां पर समाज व श्रावक-श्राविकाओं से कोई अच्छी बातें मिलती है तो उसे ग्रहण करती हूं पर द्रव्यों से हटकर आत्म धर्म में मन लगना धर्म है ।पूजा करना, दान करना यह भी धर्म की श्रेणी में आता है । अपूर्वमति माताजी ने आगे कहा कि भगवान आदिनाथ जी ने सत्य, संयम, तप,त्याग, दान आदि करना बताया है। धर्म हमेशा अनंत सुख देगा ,बिना धर्म के मनुष्य का जीवन त्रियंच के समान है । आपने कहा कि पापी से पापी भी अगर धर्म की शरण में आ जाता है तो वह धार्मिक बन जाता है ।अज्ञानी ज्ञानी की शरण में जाकर ज्ञानी बन जाता है। कर्मों के बंध, कर्म छोड़ने आदि की कुंजी लिखी है । आक्रोश रखकर मुनि भी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।समता रखकर मनुष्य 16 स्वर्ग जाकर मुनि बनकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है ।सिद्धों की शरण में नंबर आ जाए यह भावना और प्रार्थना प्रभु से करना चाहिए । अपूर्वमति माताजी ने मोहिनी कर्म को सबसे खतरनाक बताते हुए कहा कि प्रभु से यही भावना भाएं कि यह कर्म तीव्र उदय में ना आए। इस अवसर पर आर्यिका अपूर्वमति माताजी सहित उज्जैन से पधारे पंडित अशोक कुमार जैन ने चक्रवर्ती विवाह हेतु श्री पंच परमेष्ठी विधान के अर्ध चढ़वाए । विधान का भव्य संगीतमय आयोजन नगर के इतिहास में पहली बार किया गया ।श्री पंच परमेष्ठी विधान का भव्य संगीतमय आयोजन आर्यिका रत्न अपूर्वमति माताजी की प्रेरणा से समाज के वरिष्ठ निर्मल कुमार ,नरेंद्र कुमार, सुरेंद्र कुमार जैन श्रीमोड ने पुलकित श्रीमोड़ के प्रथम शुभ चक्रवर्ती विवाह समारोह के लिए कराया गया । अंत में समाज के पूर्व महामंत्री नरेंद्र जैन उमंग ने सभी का आभार व्यक्त किया ।