आत्मा का अगर कोई सगा संबंधी है तो वह देव, शास्त्र, गुरु है,
अपनों से ज्यादा राग – द्वेष न करें- अपूर्वमति माताजी
आष्टा प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता सहित किसी से भी बैर भाव नहीं रखना चाहिए ।आत्मा का अगर कोई सगा संबंधी है तो वह देव, शास्त्र, गुरु है ।जो आपके जीवन को तार देते हैं, ऐसे गुरुवर पर विश्वास कर धर्म – आराधना करें ।अपनों से ज्यादा राग – द्वेष नहीं करें, कर्तव्यों का निर्वहन करो। कर्ता बनकर नहीं आत्मा पर अनुशासन कर वीतरागता देखे ।धर्म के प्रभाव से शत्रुता मित्रता में बदल जाती है, विष भी औषधि बन जाता है ।भक्ति का चमत्कार अवश्य होता है ।
उक्त बातें श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर अलीपुर में अपने आशीष वचन के दौरान संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज की परम प्रभाविका शिष्या आर्यिका रत्न अपूर्वमति माताजी ने आशीष वचन के दौरान कही ।दिगंबर जैन समाज के प्रवक्ता नरेंद्र गंगवाल ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि अपूर्वमति माताजी ने आगे कहा सम्मेद शिखर वह तीर्थ एवं अतिशय क्षेत्र है जहां से 20 भगवान मोक्ष गए हैं। हम प्रतिदिन उन पांचों पर्वतों के दर्शन भाव से करते हैं ,जहां से भगवान मोक्ष गए थे ।ऐसे भाव आप लोग भी अपने मन में लाएं ।साथ ही सभी कृत्रिम अकृत्रिम चैत्य चैत्यालयों को भी नित्य नमस्कार करना चाहिए। अपने धर्म के नियमों का पालन सदैव करना चाहिए। मकर सक्रांति के दिवस पर भरत चक्रवर्ती को आसमान में सूर्य के स्थान पर जिन बिंंब नजर आया था। भाव का बहुत महत्व है। समूचे देश में सर्वाधिक जिनालय भगवान पार्श्वनाथ जी एवं चंद्रप्रभु के हैं ।भाव दर्शन परिणामों में सुधार लाते हैं। जिन्होंने विशुद्धि , गृहस्थी व बस्ती छोड़ दी उन्हें ही मोक्ष मार्ग मिलता है। गृहस्थी वाले को सम्यक दर्शन की प्राप्ति संभव नहीं है ।दूसरा तो बाद में धोखा देता है पहले अपने वाला देता है ।समाज के प्रवक्ता श्री गंगवाल ने प्रवचन की जानकारी देते हुए बताया कि अपूर्वमति माताजी ने कहा कि व्यक्ति को धोखा दूसरा बाद में देता है ,पहले अपने वाला ही धोखा देता है। उन्होंने अनेक उदाहरण भी दिए ,जिसमें भगवान पार्श्वनाथ पर मुनि अवस्था के दौरान उपसर्ग करने वाला कवट उनके ही परिवार का अर्थात भाई था ,पांडवों को गरम – गरम लोहे के आभूषण और किसी ने नहीं मामा और उनके पुत्र ने पहनाए थे। आपने कहा कि एक-एक कदम मोक्ष मार्ग पर बढ़ते चले ।श्रवण संस्कृति भी कहती है, स्वयं संभल जाओ तो श्रवण संस्कृति भी संभल जाएगी ।अपनों से ज्यादा राग द्वेष न करें। गुरुवर में आस्था रखें। अशुभ कर्म का उदय है तो शुभ कार्य भी अशुभ कार्य में बदल जाते हैं । श्री गंगवाल ने आर्यिका रत्न के आशीर्वचन की जानकारी देते हुए आगे बताया कि उन्होंने कहा कि अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ निर्वहन करना चाहिए और शुभ कर्म है तो अशुभ भी शुभ में परिवर्तित हो जाता है। इस द्वेष भावना को अपने मन से निकालने के लिए डंडा भी मारना पड़े तो मारे। धर्म का प्रभाव रहता है तो शत्रुता भी मित्रता में परिवर्तित हो जाती है। वही सर्प हार के रूप में परिवर्तित हो जाता है। धर्म के कारण देव भी बस में हो जाते हैं। कठिन सिद्धांत अपनाएं ।चारों नली चौक होने पर भी आचार्य श्री के दर्शन के भाव एक श्रावक में थे ,उसने आचार्य श्री के पास जाने की परिवार से बात कही ,तो परिवार वालों ने कहा जब डॉक्टर ने आपको जरा सा भी चलने से मना किया है और पहले ऑपरेशन कराने को कहा है तो ऑपरेशन करा लो उसके पश्चात आचार्य श्री के दर्शन कर लेंगे। लेकिन उक्त श्रावक के भाव आचार्य श्री के पास जाने के थे वह आचार्य श्री के पास पहुंचा और उनसे कहा कि मेरी चारों नली चौक है ,मुझे आपका अच्छा आशीर्वाद चाहिए ।आचार्य श्री ने उसे आशीर्वाद दिया और जब वह अपने परिवार के साथ ऑपरेशन कराने के लिए पहुंचा तो डॉक्टर ने कहा कि आपकी कोई भी नली चौक नहीं है ।इस प्रकार भक्ति का चमत्कार भी कई बार देखने को मिला है।
कल अलीपुर मंदिर में भक्तांबर जी विधान का भव्य आयोजन
अलीपुर मंदिर समिति के अध्यक्ष विमल जैन एवं समाज के महामंत्री कैलाशचंद जैन चित्रलोक ने बताया कि 28 नवंबर गुरुवार को सुबह 7 बजे अलीपुर मंदिर में भगवान के अभिषेक के पश्चात वृहद्ध शांति धारा अपूर्वमती माता जी के ससंघ सानिध्य में होगी। तत्पश्चात पूजा – अर्चना कर भक्तांबर जी का विधान भक्ति भाव के साथ किया जाएगा ।समाज जनों से समय पर उपस्थित होने का आग्रह भी किया है।