नागरिकता संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है और राष्ट्रपति से मंजूरी के साथ ही इसे कानूनी मान्यता मिल जाएगी. इसके बाद पाकिस्तान, बंगालदेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को देश की नागरिकता मिल जाएगी. इसे लेकर देश के मुस्लिम संगठन सवाल खड़े कर रहे हैं।विधेयक को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताकर विरोध के स्वर तेज कर दिए हैं।उन्हें लगता है कि इस विधेयक के जरिए मुसलमानों को आने वाले समय में एनआरसी प्रक्रिया के कारण दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं!
शुक्रवार को नागरिकता संसोधन बिल के खिलाफ सीहोर जिले की आष्टा तहसील में जमीयत उलेमा ए हिन्द के बैनर तले सेकड़ो मुस्लिमों ने हाथ मे तख्तियां लिए पैदल मार्च करते हुए तहसील परिसर में संयुक्त कलेक्टर ब्रजेश सक्सेना को ज्ञापन सौपा ।जमीयत उलेमा ए हिंद ने अपनी 6 मांगों को लेकर ज्ञापन सौपइस दौरान प्रशासन भी मुस्तेद रहा वही कलेक्टर अजय गुप्ता और एसपी एसएस चौहान स्वयं जमीयत उलेमा ए हिंद संगठन संगठन से जुड़े सदस्यों से चर्चा की वही पुलिस बल भी बड़ी संख्या में मौजूद रहा।
ईस अवसर पर कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक , अति पुलिस अधीक्षक,अपर कलेक्टर , एस डी एम , और तहसीलदार सहित बड़ी संख्या में प्रशासनिक अधिकारी रहे मौजूद।
वही जमीयत उलेमा ए हिंद के बैनर तले मुस्लिम समुदाय के नागरिकों ने महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर अपनी 6 सूत्री मांगों का उल्लेख या जिसके अनुसार
- हम जमीयत उलेमा ए हिंद के सदस्य और समर्थक विनम्रता पूर्वक महामहिम का ध्यान नागरिक संशोधन विधेयक 2019 की ओर दिलाना चाहते हैं जोकि प्रत्यक्ष था सांप्रदायिकता से प्रेरित है हम इस कानून की निंदा करते हैं क्योंकि यह विधेयक भारत की नागरिकता के लिए धर्म को कानूनी आधार बनाता है इसका उद्देश्य 3 पड़ोसी देशों पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले उत्पीड़ित अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देना बताया गया है लेकिन यह विधेयक धर्म के आधार पर उन में भेदभाव करता है इसे धर्म के आधार पर नागरिकता को विभाजित करने की मंशा स्पष्ट प्रतीत होती है इस तरह यह देश के बहुलवादी ताने-बाने का उल्लंघन करता है।
- हमारे देश का चित्र जो हमारे स्वतंत्रता आंदोलन राष्ट्र के निर्माताओं के विचारों और हमारे संविधान में निहित उसूलों से निकलता है वह ऐसे देश का है जो सभी धर्मों के लोगों के साथ समान व्यवहार करने को वचनबद्ध है संबंधित बिल में नागरिकता के लिए एक मानदंड के रूप में धर्म का उपयोग देश के इतिहास में विराम को चिन्हित करेगा जो कि कट्टरपंथ पर आधारित है यह विराम संविधान की मूल भावना और संरचना के साथ असंगत होगा
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में हर व्यक्ति को कानून के सामने समानता दी गई है और राज्य को किसी भी व्यक्ति के प्रति उसके धर्म जाति या पंथ के आधार पर कानून के सामने भेदभाव करने से रोका गया है ऐसा करना समानता के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित यह विधेयक संविधान की भावना और इसकी मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
- यह बिल असम समझौते 1985 का भी उल्लंघन करता है जो असम में अवैध रूप से आ बसने वाले विदेशियों का पता लगाने के लिए कट ऑफ तारीख के रूप में 25/03/1971 तय करता है इस प्रकार मनमाने ढंग से इस समझौते की अनदेखी से उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में शांतिपूर्ण माहौल में खलल पड़ रहा है।
- हम इस संवैधानिक और अब मान भी बिल को अस्वीकार करते हैं और अपने महान देश के सभी न्याय प्रेमी और धर्मनिरपेक्ष नागरिकों से अपील करते हैं कि वह सामूहिक रूप से शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज़ उठाएं और इसके क्रियान्वयन को रोकने के लिए हर संभव कानूनी तरीके से इसका विरोध करें।
- हम भारत के माननीय राष्ट्रपति से अपील करते हैं कि वे इस कानून के माध्यम से लोगों के साथ अन्याय और सांप्रदायिकता के लक्ष्य को रोकने के लिए अपने गरिमा पूर्ण पद के प्रभाव का उपयोग करें हम भारत के माननीय उच्चतम न्यायालय से भी अपील करते हैं कि वह निंदनीय कानून का स्वयं संज्ञान ले जिसके लागू हो जाने से संविधान की मूल संरचना नष्ट हो जाएगी