अष्टा : जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं, गुरु को हम अपने जीवन में बनाएं भाग्य विधाता- साध्वी अपूर्वमति माताजी ।
जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं, गुरु को हम अपने जीवन में बनाएं भाग्य विधाता- साध्वी अपूर्वमति माताजी
फोटो 10 गुरु पूर्णिमा पर साध्वी अपूर्वमति माताजी आशीर्वचन देते हुए
फोटो 11 धर्म सभा में उपस्थित श्रद्धालु गण
आष्टा। पूर्णिमा तो हर माह में आती है, लेकिन गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है ।गुरु को हम अपने जीवन में भाग्य विधाता बनाएं ,हम गुरु के माध्यम से अवगुणों का क्षय करें। गुरु तीर्थ के समान है ,उनके पास जाने से सारे पाप दूर हो जाते हैं जिसके जीवन में गुरु नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं।
उक्त बातें गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर दिव्योदय तीर्थ क्षेत्र किला पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज की परम प्रभाविका शिष्या अपूर्वमति माताजी ने आशीष वचन के दौरान कही। आपने इस अवसर पर कहा कि सारी दुनिया भुला दी गुरु आपके लिए, गुरु आप ना भुलाना हमारे को। गुरु को हम अपने दिल में बसाएं, साध्वी जी ने कहा गुरु सूर्य के समान है जो हमारे अंधकार को दूर कर देते हैं। गुरु मांझी के समान है जो भव से पार लगा देते हैं। गुरु तरुवर की छाया के समान भी है, गुरु अनुशासन में रखते हैं। गुरु की एक आंख में मां की ममता तो दूसरे में पिता का प्यार नजर आता है ।इस प्रकार गुरु से वात्सल्य मिलता है। गुरु भक्ति और गुरु के प्रति समर्पण पर आप ने विस्तार से प्रकाश डाला। गुरु गिरते हुए शिष्य को संभालते हैं ।साक्षात भगवान महावीर,बाहुबली, कुंदकुंद आदि के समान आचार्य श्री विद्यासागर जी मिले हैं। गुरु के प्रति श्रद्धा है तो असंभव भी संभव हो जाता है। कर्म के ताले भी गुरु की कृपा से खुल जाएंगे । साध्वी अपूर्वमति माताजी ने कहा कि आचार्य विद्यासागर महाराज धर्म की प्रभावना सारे जगत में करा रहे हैं, वह विश्व गुरु बन गए हैं ।हमें अपनी मान मर्यादा नहीं छोड़ना चाहिए ।गुरु के प्रति आदर सम्मान रखना चाहिए। गुरु से विनम्रता, विनय के साथ बात करना चाहिए।